गो-धन, गज-धन, वाजि-धन और रतन-धन खान। जब आवत संतोष-धन, सब धन धूरि समान
रिपोर्ट/दीपक कुमार
जगतपुर रायबरेली – सन्त निरंकारी सत्संग भवन जगतपुर में बुधवारीय साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम में सत्संग की अध्यक्षता करते हुए महात्मा बसन्त सिंह जी ने कहा सद्गुरु से प्राप्त ये ब्रह्म ज्ञान ही हमें जन्म मारण के बन्धन से मुक्त कर अमरता की ओर ले जाता है। जब हमारी निरंतरता सत्संग में बनी रहती है तो हमारे अन्दर के विकार काम, क्रोध, लोभ और मोह धीरे धीरे नष्ट हो जाते हैं हमारा जीवन एक सहज अवस्था वाला हो जाता है।
हम अपने निज स्वरूप को ओर उन्मुख होने लगते है अहम् ब्रह्मास्मि इस संसार में सभी ब्रह्म स्वरूप ही है। जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है कि हर शय में जलवा तेरा हूबहू है। अनेकों भ्रम में पड़ कर हम अपना जीवन जी रहे थे। लेकिन पूर्ण सद्गुरु की कृपा हो गयी है अब जिधर देखता है। ये निरंकार अंग संग दिखता है। हर घट में इसका दीदार होता है महात्मा आगे कहते हैं। गो-धन, गज-धन, वाजि-धन और रतन-धन खान। जब आवत संतोष-धन, सब धन धूरि समान दुनिया के सारे सुखों को पाकर भी जिन्हें संतोष नहीं होता है।
वे सब कुछ पाकर भी दुःख में जीवन जीते हैं। सन्त महात्मा प्रभु परमात्मा का ज्ञान पाकर अपने जीवन में एक संतोष धन का ही महत्व रखते है। हर पल परमात्मा का शुकराना करते हुए जीवन जीते चले जाते हैं। जो दूसरों के लिए भी प्रेरणा दायक होता है इसी मौके पर ब्रांच प्रबंधक ज्ञान प्रचारक महात्मा बसन्त लाल जी ने कहा ठाकुर मेरा सर्व ब्यापी ठौर न कोई खाली है पात पात पर यही बिराजे बैठा डाली डाली है। परमात्मा सर्वत्र है इस संसार के सभी जीवों में है पेड़ों में पत्तों में डाली डाली में है।
स्वांसो से करीब ये परमात्मा है।भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं अपनी योग माया से ढका हुआ हूं। तुम मुझे इन नेत्र से नहीं देख सकते जब साकार ब्रह्म दुनिया में आता है तो अपनी ही माया का आवरण हटता है आज समय की सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज परमात्मा का ज्ञान जन जन तक पहुंचा रहे हैं इस मौके पर महापुरुषों ने गीत बोला सतगुरु से ले ला ब्रह्मज्ञानवा हो जन्मवा निहाल हो जाई, माना सतगुरु के वचनवा हो जीवन खुशहाल हो जाई।
और बहनों ने गीत बोला मैंने ढूंढ लिया रे जग सारा कि तेरे जैसा कोई नहीं, तू तो प्यार से भी लगता है प्यार की तेरे जैसा कोई नहीं। इस मौके पर समस्त सैकड़ों की साध संगत मौजूद रही।