मानव को मानव हो प्यारा, इक दूजे का बने सहारा

मानव को मानव हो प्यारा, इक दूजे का बने सहारा

 

रिपोर्ट/ दीपक कुमार 

जगतपुर रायबरेली – सन्त निरंकारी सत्संग भवन, जगतपुर में आज सुबह दैनिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित हुआ। सत्संग की अध्यक्षता करते हुए महात्मा शिव मूर्ति जी ने साध संगत को संबोधित करते हुए कहा, “ऐ जीवन को जीने वाले, जीवन क्या है जान ले। जीवन को तू सफल बना ले, ईश्वर को पहचान ले। जीवन उसको कहते हैं जो प्रीत प्यार में बीत रहा है, गुरु की मति को अपनाकर जो स्वयं सुधार में बीत रहा है। जीवन उसको कहते हैं जो काम किसी के आता है, प्रेम दया से भरा हुआ है, सबको गले लगाता है। ज्ञान पाकर भक्ति का जो नित आनंद उठाता है, कहे हरदेव, उसी का जीवन सफल सदा कहलाता है।”

 

महापुरुषों ने हमेशा जीवन को जीने की कला सिखाई है। 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। इस योनि का उद्देश्य प्रभु प्राप्ति है। मनुष्य योनि में रहते हुए ही आत्मा का कल्याण संभव है। निरंकारी सतगुरु ब्रह्मज्ञान देकर सिखा रहे हैं कि जीवन को सही मायनों में कैसे जीना है और कैसे दया, विनम्रता और प्यार के गुणों को अपनाकर मानवता के साथ जीवन बिताना है।

 

यदि हम इंसान हैं, तो एक-दूसरे के काम आना हमारा स्वभाव और आदत बन जाए। प्यार वही है जो दूसरों को खुशियाँ दे, ऐसा नहीं जो अपनी इच्छाएं दूसरों पर थोपे। प्यार देना अर्थात प्यार बन जाना। यदि हम खुद प्यार बन जाएंगे, तो हम सबके दिलों को खुशियाँ ही दे पाएंगे और एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान कर पाएंगे।

 

प्रभु परमात्मा का ज्ञान पाकर हमें खुद में सुधार करना है और खुद को बेहतर बनाना है। जैसे-जैसे हम इस ब्रह्मज्ञान को अपने जीवन में अपनाते हैं, हमारा जीवन खुशियों, आनंद और शांति से भर जाएगा। यह अवस्था भक्ति द्वारा प्राप्त की जा सकती है। यही संदेश महात्मा ने जन-जन तक पहुँचाने का प्रयास किया।

 

इस मौके पर ब्रांच प्रबंधक, ज्ञान प्रचारक महात्मा बसन्त लाल जी ने सभी का धन्यवाद किया। सत्संग में महात्मा राम संजीवन, रतीपाल, राम लखन, रज्जन, अनिल कुमार, पवन कुमार, राम सुमेर, बाबूलाल आदि समस्त साध संगत उपस्थित रही।

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Author: Bureau Report