वतर्मान सरकार द्वारा शिक्षकों का उत्पीडन भारत को विश्व गुरु बनाने में कितना सहायक-एक विमर्श।
प्राचीन काल से ही राष्ट्र निर्माण में मूल्य परक एवं गुणवत्ता परक शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान रहा है । यह शिक्षा व्यवस्था गुरु शिष्य प्रणाली पर आधारित है श्री भगवत गीता में स्पष्ट उल्लेख है कि ज्ञान के समान दुनिया में और कोई पदार्थ नहीं है
नहिं ज्ञानेन सदृशं पवित्र मिहं विद्यते । गीता 4/38
इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला नि:सन्देह कुछ भी नहीं है और यह ज्ञान प्रत्येक शिष्य को गुरु के सानिध्य में ही प्राप्त करना चाहिए
तद्विद्धि प्राणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानंम ज्ञानिनसत्यदर्शिन।गीता 4/24
किसी गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के परंपरा अति प्राचीन है।इसी गुरु शिष्य परंपरा के आधार पर प्राप्त ज्ञान विश्व विस्तीर्ण हुआ और उसी ज्ञान के आधार पर भारत की एक विश्वस्तरीय पहचान बनी तथा वह विश्व गुरु के महत्वपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित हुआ।
जगे हम लगे जगाने विश्व, लोक में फैला तब आलोक
इसका मुख्य कारण था कि तत्कालिक समाज में शिक्षा व्यवस्था प्रत्येक प्रकार के तनाव से मुक्त थी प्रकृति की सुरम्य वनस्थली में समस्त प्रकार के तनाव से मुक्त होकर गुरु अपने शिष्यों को भौतिक, सामाजिक आर्थिक ,सांस्कृतिक ,राजनीतिक और आध्यात्मिक आदि विषयों से उचित ज्ञान का दान किया करते थे तनाव की स्थिति में अंत:करण से सम्यक ज्ञान का प्रस्फुटन हो ही नहीं सकता। ज्ञान प्रदान करने के लिए गुरु को समस्त सामाजिक एवं राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर मानसिक रूप से स्वस्थ होना अनिवार्य है। वैदिक काल में वेद ॠचाओं की सर्जना गुरूओं की इसी मानसिक स्वस्थता का परिचायक है समस्त वैदिक ॠचाओं की संरचना चिंतन के आधार पर हुई है और यह चिंतन स्वस्थ मानसिक संतुलन के बगैर संभव नहीं है वेदों की चारों शाखाओं संहिता ,ब्राह्मण ,आरण्यक औरत की सर्जना तनाव रहित वातावरण में चिंतन के आधार पर हुआ है ।
रामायण काल में अयोध्या पुरी का उल्लेख हुआ है अयोध्या नगरी एक अति विशाल एवं अति समृद्ध होने के बावजूद भी वहां के राजकुमार श्री राम को शिक्षार्जन हेतु वशिष्ठ व विश्वामित्र के आश्रम में जाना पड़ा आश्रम का अभिप्राय होता है वह स्थान जो तनाव मुक्त हो जहां शांति का साम्राज्य हो ऐसे तनावमुक्त परिवेश में प्राप्त ज्ञान भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया इसके विपरीत महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य को राजभवन में कौरवों और पांडवों को शिक्षा देनी पड़ी जहां दबाव और तनाव का वीभत्स परिवेश था यह तनावग्रस्त शिक्षा विनाशकारी सिद्ध हुई इसकी परिणति महाभारत के रूप में हुई
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो तनाव मुक्त हो तभी गुरु सच्चे मन से सृजनात्मक संस्कार सम्बद्ध ,मूल्यपरक और गुणवत्ता परक शिक्षा दे सकता है । इसी तनावयुक्त परिवेश से बचाने के लिए गुरुकुल प्रणाली में शिक्षा को आश्रम व्यवस्था का विकास हुआ उपरोक्त उदाहरणों के आधार पर इतिहास साक्षी है कि किसी राष्ट्र के सम्यक उन्नयन के लिए मूल्यपरक शिक्षा की महती आवश्यकता होती है जो तनावमुक्त परिवेश में ही संभव है।
दुर्भाग्य से भारत वर्ष जो शिक्षा के क्षेत्र में विश्व गुरु की भूमिका निभाता रहा है, वहां आज शिक्षा एवं शिक्षक दोनों को तिरस्कार किया जा रहा है उस पारंपरिक शैक्षिक देश में शिक्षकों को तनाव के बीच जीकर शिक्षा का दान देना पड़ रहा है । पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए शिक्षक आज भी अपने कर्तव्यों के प्रति संकल्पबद्ध है और हर तरह से मानसिक यातना ओं को सहते हुए व राष्ट्र के भविष्य के प्रति जागरूक है उसे इस बात का पूर्ण ज्ञान है कि राष्ट्र का निर्माण सच्चे छात्रों पर ही निर्भर है छात्र इस राष्ट्र की परिसंपत्ति है और इस देश के शिक्षक उस पर संपत्ति को शक्तिशाली बनाने की प्रति कृत संकल्प है । उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निर्धारित समय प्रातः 7:30 से लेकर 4:30 तक किसी भी शिक्षक को सांस लेने की जगह भी रिक्त नहीं है।यह शिक्षकों के प्रति असम्मान उनकी भौतिक और मानसिक स्थितियों के प्रति असम्वेदना छात्रों के भविष्य के साथ खुल्लम खुल्ला खिलवाड़ है भागदौड़ की जिंदगी में शिक्षकों से कैसेअपेक्षा की जा सकती है कि वे मूल्यपरक एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सफल होंगे ।
स्वस्थ मस्तिष्क में स्वस्थ स्वस्थ चिंतन का उद्भव होता है तनावपूर्ण एवं भागदौड़ की जिंदगी में ना तो स्वस्थ मस्तिष्क रहेगा ना स्वस्थ चिंतन, यह प्राचीन भारतीय शैक्षिक व्यवस्था का घोर उपहास है ,भारतीय मनीषियों का अपमान और राष्ट्र उन्नयन में भीषण अवरोध है ।शासन द्वारा किए गए इस प्रयोग की व्यवस्था पर तत्काल पुनर्विचार की आवश्यकता है।
देवीप्रसाद मिश्र (वेदान्ती)
प्रेम चन्द भारती (व्यूरो चीफ)
रायबरेली