पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके मनपसंद पेड़ अमरूद का किया रोपण,उनकी ही कार्यस्थली पर पुत्र वीरेन्द्र ने।

पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके मनपसंद पेड़ अमरूद का किया रोपण,उनकी ही कार्यस्थली पर पुत्र वीरेन्द्र ने।

 

जगतपुर

बड़े बाबू स्व. बजरंग बहादुर सिंह कहने को तो सरकारी मुलाजिम राना बेनी माधव सिंह स्मारक इंटर कॉलेज शंकरपुर में थे। बड़े बाबू का जन्म 15 अप्रैल 1950 गोठांव गांव मजरे कचौंदामुहीउद्दीन विकास खण्ड राही सदर विधानसभा रायबरेली में हुआ था।

 

बुधवार को पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर उनके जेष्ठ पुत्र वीरेंद्र सिंह ने उनकी नौकरी की कर्मस्थली रहे राना बेनी माधव सिंह स्मारक इंटर कॉलेज शंकरपुर में बाबू जी के मनपसंद फल अमरूद के पेड़ का रोपण किया।

 

बड़े बाबू जैसा कि पद के नाम से ही लोग व्यक्ति के व्यक्तित्व का आकलन कर लेते हैं पर यह बाबूजी उन सब से बिल्कुल अलग थे । व्यक्तित्व से भी शालीन। अब बात करते हैं इनके पहनावे और सादगी की सफेद दाढ़ी, सफेद जूता, सफेद कुर्ता पजामा और उज्जवल व्यक्तित्व के धनी बड़े बाबू जितने श्वेत दिखने में लगते थे उतने ही श्वेत मन और विचार से भी थे यही कारण था कि उन्होंने पढ़ाई के बाद नौकरी की तलाश में जब निकले तो पीडब्ल्यूडी और जिला सहकारी बैंक की सचिव की नौकरी इसी कारण छोड़ दी। क्योंकि नौकरी शायद उनके व्यक्तित्व के हिसाब से नहीं थी। उनके उज्जवलता को प्रभावित कर रही थी । शायद इन्हें तलाश थी एक सादगी सहित रोजी-रोटी की नौकरी की। तलाश में धीरे-धीरे आगे चलकर इन्होंने राना बेनी माधव सिंह स्मारक इंटर कॉलेज शंकरपुर में बड़े बाबू वरिष्ठ लिपिक की नौकरी करना स्वीकार किया यही नहीं बड़े बाबू एक महान दार्शनिक भी थे इन्होंने बहुत सी कविताएं लिखी विधा,उपन्यास, संस्करण, का भी लेखन किया। इन्होंने इस मृत्युलोक से लंबी बीमारी के उपरांत 14 जुलाई सन् 2020 को विदा ले ली । बाबूजी से एक मुलाकात मुझे याद है उन्होंने कहा था कि गांव का जीवन बहुत ही संघर्षशील बहुत ही राजनीतिक भरा होता है। इन विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके निरंतर आगे बढ़ने का कारण इन्होंने निरंतर किया और जगतपुर कस्बे के कोतवाली से सटे अशोक के होटल में छुट्टी के बाद दो कप चाय पीने वालों के साथ बैठना इनका शौक था। इनकी मित्रों की माने तो वह बताते हैं कि छुट्टी के बाद लोग चौराहे पर इनका इंतजार करते थे कि 20 इंची साइकिल से बाबूजी आएंगे और सब लोग बैठकर साथ में चाय पिएंगे। लिपिक के पद पर नौकरी करते हुए इन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और सफल भी रहे बड़े पुत्र वीरेंद्र सिंह शिक्षक है, नौकरी छोटे पुत्र राघवेंद्र सिंह को असिस्टेंट मैनेजर उत्तराखंड में कार्यरत है तीन बेटियों की जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए इस संसार से विदा ले ली।

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Author: Bureau Report