जीवन का सार है – प्रेम : पूनम
रिपोर्ट/दीपक कुमार
सन्त निरंकारी सत्संग भवन, जगतपुर में सुबह सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया गया। सत्संग की अध्यक्षता करते हुए बहन पूनम जी ने कहा कि भक्ति की पराकाष्ठा प्रेम है। जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायो – जिन्होंने सच्चा प्रेम किया, उनके लिए प्रभु की प्राप्ति अत्यंत सहज हो जाती है। जीवन का सार उसी प्रेम में है, जो शुद्ध और समर्पण से भरा होता है।
सतगुरु कहते हैं कि हम स्वयं प्रेम बन सकते हैं। जब हम परमात्मा को प्राप्त कर लेते हैं और हर कण-कण में उनके दर्शन करने लगते हैं, तो हमें समझ आता है कि परमात्मा ने हमें प्रेम की छवि बनाकर भेजा है।
जब हम इस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं, तो हम खुद प्रेम बन जाते हैं। ऐसे प्रेम के आने से जीवन सारपूर्ण हो जाता है, और जीवन काटने की जगह उसे खुशियों और आनंद के साथ जिया जाता है। इस अवस्था में हर हाल में खुश रहने की प्रवृत्ति बन जाती है। इसलिए महात्मा कहते हैं कि प्रेम ही जीवन का एकमात्र सार है।
जहाँ भी जाएँ, जिस किसी से भी मिलें, हमें मुस्कान और खुशियाँ बाँटने वाला बनना चाहिए। लोगों को सुकून और शांति देने वाला बनना चाहिए, और कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
इस अवसर पर महात्मा सजन जी, रतिपाल जी, पूनम चन्द्र जी, कमल जी, वन्दना जी, उषा जी आदि साध-संगत भी उपस्थित रही।