मानवता और आत्मज्ञान का मार्ग : महात्मा आशुतोष मिश्रा
रिपोर्ट/ दीपक कुमार
जगतपुर रायबरेली – रविवार को सन्त निरंकारी सत्संग भवन, जगतपुर में सत्संग कार्यक्रम का आयोजन हुआ। सत्संग की अध्यक्षता करते हुए महात्मा आशुतोष मिश्रा जी ने साध संगत को संबोधित किया। उन्होंने अपने प्रेरणादायक संदेश में कहा कि चाहे हम कितनी भी तरक्की कर लें या कितनी भी डिग्रियाँ हासिल कर लें, लेकिन यदि मन में अभिमान है, तो वह हमें मानवता की राह पर चलने से रोक देगा और दूसरों की मदद करने नहीं देगा। जब मन में ऊँचाई का अभिमान आ जाता है, तो यह हमें सच्ची मानवता से दूर कर देता है।
महात्मा जी ने बताया कि हम मानव योनि में जन्म लेकर आए हैं, इसलिए हमें मनुष्य के गुणों को धारण कर, सच्चे इंसान के रूप में जीना चाहिए। हमें अपने आत्म स्वरूप की पहचान करनी चाहिए, क्योंकि यह शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अजर-अमर और अविनाशी है। जब हमें अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, तो मन से ऊँचाई का अभिमान भी मिट जाता है, क्योंकि सभी में एक ही आत्मा समान रूप से व्याप्त होती है। कोई छोटा या बड़ा नहीं होता।
महात्मा जी ने कहा कि सतगुरु की कृपा से जब ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है, तभी यह समझ में आता है कि हम सब एक हैं, चाहे शरीर रूप में अलग-अलग दिखते हों। इस ज्ञान से कर्तापन और अभिमान का अंत होता है और समदृष्टि का विकास होता है। इसलिए, हमें निस्वार्थ भाव से लोगों की मदद करनी चाहिए, तभी सच्ची मानवता स्थापित हो सकेगी।
इस मौके पर ब्रांच प्रबंधक और ज्ञान प्रचारक महात्मा बसंत लाल ने सभी का धन्यवाद किया। सत्संग में महात्मा रितेश कुमार, जगन्नाथ, राम सुमेर, हरकेश कुमार, अनिल कपूर, नीतीश कुमार, संजय कुमार सिंह, बसंत सिंह, शिव मूर्ति, सुखदेव प्रसाद , और बहनों में वंदना, कमला, रेखा, उषा देवी, धनदेवी, सुनीता, सीमा देवी, मीरा दीक्षित, माया शुक्ला सहित कई अन्य साध संगत उपस्थित रही।